ग्रहण के दौरान सूतक


सूतक

सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण से पूर्व की एक निश्चित समयावधि को सूतक के रूप में जाना जाता है। हिन्दु मान्यताओं के अनुसार सूतक काल के समय पृथ्वी का वातावरण दूषित होता है। सूतक के अशुभ दोषों से सुरक्षित रहने हेतु अतिरिक्त सावधानी रखनी चाहिये।

सूतक समयावधि

सूर्य ग्रहण से पूर्व सूतक काल चार प्रहर तक माना जाता है तथा चन्द्र ग्रहण के दौरान ग्रहण से पूर्व तीन प्रहर के लिये सूतक माना जाता है। सूर्योदय से सूर्योदय तक आठ प्रहर होते हैं। अतः सूर्य ग्रहण से बारह घण्टे तथा चन्द्र ग्रहण से नौ घण्टे पूर्व से सूतक काल माना जाता है।

ग्रहणकाल के समय भोजन

ग्रहण एवं सूतक के दौरान समस्त प्रकार के ठोस एवं तरल खाद्य पदार्थों का सेवन निषिद्ध है। अतः सूर्य ग्रहण से बारह घण्टे तथा चन्द्र ग्रहण से नौ घण्टे पूर्व से लेकर ग्रहण समाप्त होने तक भोजन नहीं करना चाहिये। यद्यपि बालकों, रोगियों तथा वृद्धों के लिये भोजन मात्र एक प्रहर अथार्त तीन घण्टे के लिये ही वर्जित है।

किसी स्थान पर ग्रहण दर्शनीय होने पर ही वहाँ सूतक काल माना जाता है।

गर्भवती स्त्रियों के लिये सावधानियाँ

गर्भवती स्त्रियों को ग्रहण काल में बाहर न निकलने का सुझाव दिया जाता है। मान्यता है कि राहु व केतु के दुष्प्रभाव के कारण शिशु शारीरिक रूप से अक्षम हो सकता है तथा गर्भपात की सम्भावनायें भी बढ़ जाती है। ग्रहणकाल में गर्भवती स्त्रियों को वस्त्र आदि काटने या सिलने अथवा ऐसे अन्य कार्य न करने का सुझाव दिया जाता है, क्योंकि इन गतिविधियों का भी शिशु पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

प्रतिबन्धित गतिविधियाँ

तेल मालिश करना, जल ग्रहण करना, मल-मूत्र विसर्जन, बालों में कन्घा करना, मञ्जन-दातुन करना तथा यौन गतिविधियों में लिप्त होना ग्रहण काल में प्रतिबन्धित माना जाता है।

ग्रहणोपरान्त अनुष्ठान

यह सलाह दी जाती है कि पहले से बने हुए भोजन को त्यागकर ग्रहण के पश्चात् मात्र स्वच्छ एवं ताजा बने हुए भोजन का ही सेवन करना चाहिये। गेहूँ, चावल, अन्य अनाज तथा अचार इत्यादि जिन्हें त्यागा नहीं जा सकता, इन खाद्य पदार्थों में कुश घास तथा तुलसी दल डालकर ग्रहण के दुष्प्रभाव से संरक्षित किया जाना चाहिये। ग्रहण समाप्ति के उपरान्त स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देनी चाहिये। ग्रहणोपरान्त दान करना अत्यन्त शुभ व लाभदायक माना जाता है।

ग्रहण के दौरान इस मंत्र जाप करें

तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन।
हेमताराप्रदानेन मम शान्तिप्रदो भव॥१॥

श्लोक अर्थ - अन्धकाररूप महाभीम चन्द्र-सूर्य का मर्दन करने वाले राहु! सुवर्णतारा दान से मुझे शान्ति प्रदान करें।

विधुन्तुद नमस्तुभ्यं सिंहिकानन्दनाच्युत।
दानेनानेन नागस्य रक्ष मां वेधजाद्भयात्॥२॥

श्लोक अर्थ - सिंहिकानन्दन (पुत्र), अच्युत! हे विधुन्तुद, नाग के इस दान से ग्रहणजनित भय से मेरी रक्षा करो।

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