ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से सारे शनि के कोप का भाजन बनने से बचा जा सकता है यदि पहले से ही कोई शनि के प्रकोप को झेल रहा है तो उसके लिये भी यह दिन बहुत ही कल्याणकारी हो सकता है। आइये जानते हैं कैसे करें शनिदेव की पूजा विधि और पूजा में किन बातों का रखें ध्यान....
शनिदेव की पूजा भी बाकि देवी-देवताओं की पूजा की तरह सामान्य ही होती है।
प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौचादि से निवृत होकर स्नानादि से शुद्ध हों। फिर लकड़ी के एक पाट पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर या फिर एक सुपारी रखकर उसके दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं। शनिदेवता के इस प्रतीक स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें। इसके बाद अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। तत्पश्चात इमरती व तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य अपर्ण करें। इसके बाद श्री फल सहित अन्य फल भी अर्पित करें। पंचोपचार पूजन के बाद शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप भी करना चाहिये। माला जपने के पश्चात शनि चालीसा का पाठ करें व तत्पश्चात शनि महाराज की आरती भी उतारनी चाहिये।
शनिदेव की पूजा में रखें इन बातों ध्यान
- शनि देव की पूजा करने के दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल मालिश कर स्नान करना चाहिये।
- शनिमंदिर के साथ-साथ हनुमान जी के दर्शन भी जरूर करने चाहिये।
- शनि जयंती या शनि पूजा के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।
- इस दिन यात्रा को भी स्थगित कर देना चाहिये।
- किसी जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को तेल में बने खाद्य पदार्थों का सेवन करवाना चाहिये।
- गाय और कुत्तों को भी तेल में बने पदार्थ खिलाने चाहिये।
- बुजूर्गों व जरुरतमंद की सेवा और सहायता भी करनी चाहिये।
- सूर्यदेव की पूजा इस दिन न ही करें तो अच्छा है।
- शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर को देखते समय उनकी आंखो में नहीं देखना चाहिये।
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